“नया भला भोर होगा कल”
सुना और चुप रहा
प्रदूषण भरे दिन के
प्रथम प्रहर का मतिमंद सूर्य||१||
अँधेरी सांय संध्या,
धूमिल अंधरे में
गहराती रही,
दिन
आशावान रहा
अब कोई अँधेरी रात न होगी||२||
सोचता हूँ मुस्करा दूँ
गहन अँधेरे में,
अँधेरा तो देखेगा
मेरी हिमाकत||३||