सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे मरन्तु मोक्षं


चलिए सतयुग आ गया| सतयुग तो आ ही गया है| कालचक्र का यह आगमन तो सुनिश्चित ही था|

सतयुग वही समय तो है जब प्रत्येक मनुष्य सदेच्छा रखता है| आपको हल्की सी छींक आते है, प्रत्येक मानव मात्र आपके स्वास्थ्य के लिए अपनी चिंता, संवेदना और सदेच्छा वयक्त करता है – गॉड ब्लेस यू| प्रत्येक मनुष्य अपने धुर विरोधी का भी भविष्य उज्जवल देखना चाहता है| कुछ मित्र तो प्रतिदिन नियम पूर्वक प्रत्येक प्रातः के प्रत्येक के लिए शुभ होने की कामना करते करते ही महायोगी का जीवन जीते हैं| एक मित्र हर ज्ञात अज्ञात त्यौहार पर अपनी शुभकामनाओं का अकूत भण्डार भारत सरकार की किसी सरकारी अनुदान योजना की तरह रोज लुटा देते हैं| एक मित्र तो इतने शुभकामी हैं कि मुहर्रम पर भी नहीं चूकते – चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान  |

जब भी किसी मौसमी रोग – महारोग – महामारी का मौसम आता है तो दादी- नानी- परनानी की औषधियों से लेकर भविष्यतः दो सह्स्त्रब्धियों की औषधियों का महाज्ञान मित्र से प्राप्त होता है| किसी ज्ञात अज्ञात मृत अर्धमृत अमृत किसी भी मृत्यु पर मोक्ष की सदेच्छा का सन्देश देते रहना उनका प्रिय पुण्य है| जब एक परिचित सज्जन ने देवलोकगमन किया तो सन्देश मिलते ही उन्होंने जन्मजन्मान्तर से मुक्ति और मोक्ष की महाकामना के बाद ही जलपान चाय स्वीकार की| चाय सेवन के दौरान जब उनके पास शोक व्यक्त करने के अनंत सन्देश आने लगे तो पता चला कि देव्लोकगामी सज्जन कोई अन्य नहीं स्वयं उनके पिता है|

सतयुग में अप्सराएँ न हों तो क्या हो? रात्रिकाल एक दो कन्यायें तो निर्बाध रूप से शुभरात्रि और शुभस्वप्न के सन्देश दे ही देतीं है| सतयुग में स्वप्नदोष तो लगा ही रहता है|

जब से भारत में सूचनाक्रांति हुई है, सतयुग कर – कर मोबाइल – मोबाइल होता हुआ घर – घर आ पहुंचा है| किसी राजशिरोमणि का वचन नहीं, कि आप अच्छे दिन की प्रतीक्षा करते करते मोक्ष प्राप्त कर जाते| यह सतयुग ही तो अच्छे दिन है| आपका वचन पूरा होता है, पराक्रमी| तकनीकि सूचना की दूसरी पीढ़ी वाला महायज्ञ अश्वमेध यज्ञ की भांति समस्त भारतवर्ष में सूचना क्रांति के अश्व आज भी दौड़ा रहा है| आज उसकी पांचवी पीढ़ी अपनी महापताका लेकर क्रांति के युद्धस्थल की ओर अग्रसर है| हर कोई भारतवासी प्रत्येक जीवित के लिए शुभकामना और प्रत्येक मृत के लिए मोक्षकामना के साथ जीवित है| राग द्वेष कलियुग की पुरानी बातें है|

अथ श्री सत्यसूचना कथा:| अथ श्री अनुदानित स्पैक्ट्रम कथा:|

 

 

 

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