मानव संसाधन विभाग को कंपनियों में सबसे अधिक उबाऊ माना जाता है और प्रायः उन्हें किसी सफलता का श्रेय नहीं मिलता| बहुत सी कंपनियां इस विभाग के काम को ठेके पर करवातीं हैं, मगर इससे लाभ शायद ही होता हो| यहाँ शांत मुद्रा में बैठे लोग ऐसे कारनामे करते हैं जो किसी बैलेंस शीट, प्रॉफिट लोस अकाउंट या एनुअल रिपोर्ट में नहीं आते| उन के जिक्र कंपनियों के कागजात में केवल खर्च के रूप में दर्ज होते हैं|
हरमिंदर सिंह का अपना ब्लॉग बेहद चर्चित और अपने खास मुद्दे पर शायद इकलौता हिंदी ब्लॉग है| हरमिंदर वृद्ध्ग्राम नाम से एक बेहतर ब्लॉग लिखते हैं| उनके ब्लॉग ने समय समय पर मीडिया और सामाजिक मीडिया में स्थान बनाया है| हरमिंदर सिंह ने मानव संसाधन से सम्बंधित पढाई – लिखाई के बाद मानव संसाधन विभाग में नौकरी भी की है और उस पर अब उपन्यास भी लिख दिया है| यह हरमिंदर का पहला उपन्यास है और विभागीय अनुभव का भरपूर लाभ उन्हें मिला है|
हरमिंदर सिंह अपनी शांत शैली में यह पूरा उपन्यास लिख गए हैं| अगर आप किसी कंपनी में नौकर रहे हैं तो आप इस शैली को पहचान पाएंगे| यूँ हरमिंदर हमेशा ही शांत लिखते हुए अपनी और पाठक की उत्तेजना पर काबू रखते हैं| उनके पात्र अपना क्रोध और प्रेम प्रदर्शित करते हुए लगभग शांत रहे हैं| कथानक में उपन्यासों जैसी उठापटक और गतिशीलता नहीं है| सारी कहनियाँ अलग अलग दिन की घटनाओं का जिक्र भर है, जो की उपन्यास के नाम से भी मालूम होता है| पूरा उपन्यास इन छोटी छोटी कहानियों से मिलकर साकार होता है| कब यह छोटी छोटी घटनाएँ मिलकर उपन्यास का रूप ले लेती हैं, पाठक को पता ही नहीं चलता|
पाठक को अंतिम दो अध्याय तक समझ नहीं आता कि कहानी शुरू कब हुई? कुछ पाठकों के लिए यह उबाऊ हो सकता है| आप पढ़ते पढ़ते मूल कहानी को ढूंढते रह जाते हैं| मगर इसकी खूबसूरती है, उपन्यास की छोटी छोटी कहानियों में छिपी मूल कहानी को लगभग दोबारा पढ़कर ढूँढना पड़ता है|
सूत्रधार मानव संसाधन विभाग में नया भर्ती हुआ है| स्वभावतः उसकी सोच में नौकरी और जीवन से जुड़े पहलू छाये रहते हैं| स्वभाव से गंभीर होते हुए कई बार वो दार्शनिक होते होते रह जाता है मगर पते की कई बातें करता है| उसकी छोड़ी हुई सूक्तियां उपन्यास में जगह जगह छितरी पड़ी हैं| विभाग की उबाऊ जिन्दगी को रंगते हुए कर्मचारी जीवन में आगे बढ़ रहे हैं| उनके बीच का हास्य, प्रेम, भावुकता, आदि नामालूम तरीके से आगे बढती हैं| लेखक उन भावनाओं की स्वाभाविक गंभीरता बरकरार रखने में कामयाब रहा है| अधिकतर उपन्यास अपने रसीले वर्णन में अपना औचित्य खो बैठते हैं| परन्तु इस उपन्यास की यह शांत शैली उनको वास्तविकता प्रदान करती है|
हमेशा चमत्कार की प्रतीक्षा करते हिंदी साहित्य जगत में इस उपन्यास को शायद कोई महत्व न दिया जाए| हो सकता है यह उपन्यास हिंदी की खेमेबाजी से बचकर दूर निकल जाए| उपन्यास की भाषा वर्तमान प्रचालन की रोजमर्रा वाली गंगा जमुनी हिंदी है| पंडिताऊ संस्कृतनिष्ठ होने का कोई आग्रह इसमें नहीं हैं| उपन्यास की गति का धीमा होना उसके पाठ में बाधा नहीं बनता बल्कि उचित समय पर समाप्त होकर उपन्यास पाठक को एक आकर्षण में बांध लेता है|
पुस्तक – एच. आर. डायरीज़ – मानव संसाधन विभाग की अनकही
लेखक – हरमिंदर सिंह
प्रकाशक – ओपन क्रेयोंस डॉट कॉम
प्रकाशन वर्ष – 2016
विधा – उपन्यास/कहानी
इस्ब्न – 978-93-52017-78-2
पृष्ठ संख्या – 180
मूल्य – 210 रूपये
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