“विज्ञान जो बता रहा है वो सब वेदों में है, मगर वेदों में कहाँ है, पंडितजी को नहीं मालूम… अथ सत्य कथा||”
अभी कुछ दिन पहले जब यह वाक्य मैंने फेसबुक पर डाला तो अति विचित्र प्रतिक्रिया हुई| मेरा आशय पण्डित जी पर टिपण्णी करना था और इसका छद्म उद्देश्य उन सभी तथाकथित धर्मगुरुओं और पदाधिकारियों पर टिपण्णी करना था जिन्हें हम पण्डित, स्वामी, संत, मोलाना, हाजी, काज़ी, पादरी, भंते आदि आदि कहते हैं| इस आलेख में आगे जब भी पण्डित जी शब्द प्रयोग हो तो उसमें यह सभी धार्मिक पदाधिकारीगण सम्मलित होंगे|
अधिकतर धार्मिक पदाधिकारियों की समस्या है कि उन्हें अपने धर्मग्रन्थ की मूल भाषा न के बराबर आती है| कुछ पण्डित लिपि तो पढ़ सकते है, मगर भाषा नहीं| अर्थात संस्कृत, अरबी, पाली, हिब्रू आदि का उच्चारण मात्र कर सकते हैं मगर अर्थ नहीं| प्रायः इन सभी का ज्ञान साधन इनके बड़े धार्मिक नेताओं की खोखली भाषणबाजी ही होती है या कभी कभी सस्ते किस्म के गुटखे या टीकाएँ|
हास्य इस बात से भी उत्पन्न होता है कि आज की पीढ़ी को दोष देकर हाथ झाड़ लिए जाते हैं कि “आज की पीढ़ी संस्कृत, पाली, प्राकृत, अरबी या हिब्रू नहीं पढ़ती”| मगर पिछले दो हजार वर्षों में इतनी सारी पीढ़ियों ने यह सब भाषाएँ और धर्म ग्रन्थ पढ़ कर विज्ञान के क्षेत्र में कौन से तीर मार लिए|
आज के समय में कोई भी धर्मग्रन्थ हजार – दो हजार वर्ष में कम पुराना नहीं है मगर विज्ञान का विकास पिछले दो सौ वर्षों में ही हुआ है| यह वही समय है जबसे संस्कृत, पाली, प्राकृत, अरबी या हिब्रू आदि महान भाषाएँ पढ़ना कम हुआ है| मेरे जैसे गिने चुने लोग अवश्य ही शौक में पुरानी भाषाओँ को पढ़ लेते हैं|
अब बात करते हैं धर्म ग्रंथों में विज्ञान होने की| जो भी विद्वान धर्म ग्रंथों को वैज्ञानिक ग्रन्थ मानते हैं वह धर्म ग्रंथों का अपमान कर रहे हैं| धर्म ग्रंथों का उद्देश्य मनुष्य को आध्यात्मिकता की ओर ले जाना हैं और विज्ञान मात्र भौतिकता और सृष्टि पर मानव की विजय का अभियान मात्र है| यह सही है कि धर्मग्रंथों में कुछेक वैज्ञानिक बातें मिल सकती हैं मगर वह केवल प्रसंगवश आयीं हैं| धर्मिक कथाओं में विज्ञान ढूँढना धर्म के उद्देश्य से भटकना है| उपवेदों में गणित और आयुर्वेद भी इसलिए हैं कि उनकी आध्यात्मिक स्वस्थ जीवन में आवश्यकता है, उनका भौतिक लाभ से कोई सम्बन्ध नहीं है|
आज जो लोग अपने अपने धर्मग्रन्थ में विज्ञान होने की बात कर रहे हैं वह मात्र भौकिकतावादी पीढ़ी को बरगला रहे है जिस से उनकी दुकान उन लोगों में भी चलती रहे जिनकी आध्यात्मिकता में कोई रूचि नहीं है|
यदि कोई आपसे अपने धर्मग्रन्थ में विज्ञान की बात करे तो संभल जाएँ, उसे अपनी दुकान में दिलचस्पी है धर्म और विज्ञान में नहीं|
Sadly, this holds true. The ones who know nothing are hailed as saints of highest caliber and the true seekers are driven to wilderness because of their maverick view.
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