बचपन में दावत खाने जाना सबको पसंद होता है और बड़े होकर दावत-बाजी करना| घर भर भले ही आपको शुद्ध स्वास्थ्यवर्धक स्वादिष्ट पवित्र भोजन मिले, मगर बड़ी बड़ी दावतों में धक्कामुक्की कर कर खाना, गजब का संतोष देता है|
किसी ज़माने की दावतों में पांत जिमाई जातीं थीं, प्यार परोसा जाता था, भोजन ग्रहण होता था, तृप्ति प्राप्त की जाती थी| मगर मजा.. मजा तो आज की दावतों में हैं|
एक हाथ में थाली और दूसरे हाथ में छुरी कांटा पकड़ना, प्लेट से प्लेट टकराकर गप्पें मारना, कुहनियाँ भिड़ा कर सॉरी बोलते रहना, सहधर्मिता का सहज उदहारण है| बड़ी बड़ी दावतों में भोजन से अधिक भार प्लेट का होता है| प्लेट में जगह इतनी कि सलाद भी न समाये, परोसे में खाना ऐसा कि जी ललचाये, रहा न जाये|
हिन्दुस्तानी दावतों में सबसे जरूरी चीज हैं, रायता… बूंदी से ले कर वोडका तक, रायता तमाम तरह का हो सकता है| मगर, रायते का मजा उसे खाने में नहीं है, फ़ैलाने में है| ये अलग बात है, खाने वाला रायता कम फैलता है, फ़ैलाने वाला रायता अलग होता है| मेजबान का बड़प्पन हैं रायता न फैले और मेहमान का मजा है कि रायता इतना फैले कि चटकारा बन जाये|
दावत तो बहाना है, मिलने जुलने का, गप्पों का, किस्से कहानी का, गले मिलने का, हाथ मिलाने का, नैन लड़ाने का, नैन चुराने का, कुहनियाँ टकराने का, और तो और.. मौका पड़ते ही रायता फैला देने का|
दावतों में रायता फैलाना गजब की लत है| मगर, दावतबाजी एक बीमारी है, जो वक्त के साथ दारूबाजी में बदलती है और चुनावों के साथ वोट में|