हर पल
मेरी बातें करता|
सुबह शाम
मोबाइल मचलता|
जागना, सोना, खाना, पीना,
बिन मेरे न जीना|
चल दीं, पहुँचीं,
हर जगह पर क्यों होती हो,
बारिश धूप में क्यों रोती हो|
चिंता, हर दम हर पल,
नींद उड़ा बैठा है|
सुबह छोड़ना दफ्तर तक,
लेने आना रोज,
हरपल उसकी आँखें
करती मुझको खोज|
न चिंता खुद के खाने की
न अपने दफ्तर जाने की|
कितना ही अच्छा है,
कितना ही भोला है,
कितना प्यार भरा है,
कितना ध्यान धरा है||
न पूछो उसकी बातें,
सोचती हूँ,
क्या होगा जब पाऊँगी,
उसने जीवन में सिर्फ प्यार करा है,
मुझको पाने की खातिर,
सोंप सका क्या मुझको,
अपने जीवन की थाती?
क्या माता की आशा,
क्या पिता का तप,
क्या भाई के बल,
क्या बहन का स्नेह,
कुछ मान रख पाया है?
पढ़ न सके तुम मेरी खातिर,
कर न सके तुम मेरी खातिर,
उन्नति के पथ की बातें?
प्रेम की पोथी बांची थी जब,
ज्ञान की पोथी क्यों छोड़ी?
करते थे आने जाने का क्रम,
कर न सके तुम थोड़ा श्रम?
मैं प्रेम तुम्हारा हूँ,
जीवन का धिक्कार नहीं,
जो उन्नति को रोके,
वो सच्चा प्यार नहीं||