अंधेर माह


वह सुबह किसी भी तरह सामान्य नहीं थी| देश जल रहा था और पापा को ऑफिस जाने की जल्दी थी| शहर में कुछ भी होने से पहले वह ऑफिस पहुंचना चाहते थे| तभी पुलिस की जीप घर के बाहर आकर रुकी| सबसे पहले उतरने वाले पुलिस वालों ने अपनी एड़ी पर पूरी ताकत लगा कर सलामी दी| कुछ पुलिस वाले घर के चारों तरफ फ़ैल गए| पुलिस जीप से घोषणा हुई शहर में धारा १४४ लगी हुई है और यदि कोई भी इसका उलंघन करता है तो कार्यवाही की जायेगी| सब – इंस्पेक्टर में पापा के कान में कुछ कहा और अपना सिर हिला कर पापा चौके की ओर चले गए| मम्मी ने अधपकी चाय कप में डाल कर पापा को दी और एक नमक पारे के साथ पापा ने जाय गटकी| बाहर गश्त मार कर लौटा एक पुलिस वाला छत पर चला गया| जबकि पुलिस जीप में पापा सब – इंस्पेक्टर के साथ चले गए| मम्मी में पुलिस वाले से पूछा आप कितने लोग हो| जबाब मिला, साहब कुल जमा आठ कप चाय बना लें|

उनमें से हर पुलिस वाला सुबह पांच बजे ही ड्यूटी पर बुला लिया गया था और भूखा था| सख्त हिदायत थी, अगले हुक्म तक कोई खाना पीना नहीं| माँ ने चाय बना कर हुक्म दिया चाय पीने का और एक एक कर सबने नमकपारे हाथ में भरे और दुसरे हाथ में चाय लेकर वापस गश्त शुरू कर दी| पापा जब लौटे तो हेड कांस्टेबल ने बोला, साहब आस पास का सब ओके रिपोर्ट है|

पापा ने जैसे तैसे खाया और जीप में बैठे ही थे| वायरलेस ने बोला नहीं पुलिस जीप में नहीं| पापा पैदल चाल दिए और जीप दरवाजे पर रुकी रही| आस पास दहशत फ़ैल चुकी थी| पुलिस में पास पास सख्ती से धारा लागु कर रखी थी और शहर सिकंदराराऊ के बड़े जनसंघी नेता को भी हमारे घर की तरफ आने से रोक दिया था| पुलिस की सलाह पर मम्मी ने मुझे भेजकर उनसे कहलवा दिया, जब तक सरकारी हुक्म है, कोई रिश्तेदारी नहीं| हर पंद्रह मिनिट बाद जीप से आदमी उतर कर मम्मी के पास आता, और उस जगह का नाम बोल कर चला जाता जहाँ से पापा को अलीगढ़ ले जाने वाला ट्रक गुजर चुका होता|

घर में पुलिस की खुली आवाजाही से हम तीनों बच्चे भी डरे हुए थे| हमें कुछ पता नहीं था क्या हो रहा है| कुछ देर बाद मम्मी ने हमें भी नाश्ता दिया, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें अगर मिटी नहीं थी तो कम जरूर हो गयी थीं| तभी पुलिस वाले ने आकर बोला ट्रेज़री; मम्मी ने आसमान की तरफ देख कर कुछ कहा और खुद भी नाश्ता लेकर बैठ गयीं|

मम्मी की तरफ से मेरे अलावा किसी को भी घर से निकलने की इजाजत नहीं थी और मुझे किसी से बात करने की भी इजाजत नहीं थी| ख़राब बात यह थी कि मुझ से हाल चाल पूछने वाले हर व्यक्ति को मेरे पीछे चलने वाला पुलिस वाला शक की निगाह से घूरता था| मैं महीने भर का राशन और कई दिन के लिए सब्जियां ले आया था| मेरी इस खरीददारी के साथ ही शहर में सब्जियों के भाव बढ़ गए थे| एक दूकानदार ने हिम्मत कर के पुछा, यहाँ भी कर्फ्यू लगेगा| मेरे कुछ जबाब देने से पहले ही पीछे खड़े पुलिस वाले ने उससे पूछ लिया, क्यों कर्फ्यू में ससुराल जायेगा क्या?

शाम को चार बजे पापा वापस आ गए| मम्मी ने उनके शहर में पहुँचते ही बड़ा भगौना भरकर चाय चढ़ा दी थी और उनके घर पहुँचते पहुंचते कई सरकारी लोग घर पर जमा थे| पापा शांत थे और बेहद संजीदगी से जबाब दे रहे थे| पुलिस जीप के जाने के बाद उत्तर प्रदेश के दोनों बड़े अखबारों के स्थानीय संवाददाता भी घर तक आये मगर पापा ने चाय नाश्ता करा कर विदा कर दिए|

पापा ने बताया कि पुलिस को डर था की कहीं दंगाई पापा को सिकंदराराऊ से अलीगढ़ ले जाने वाली पुलिस जीप पर हमला न करें इसलिए किसी ट्रक में बैठ कर पापा अलीगढ़ गए थे और थाने बार पुलिस जीप ट्रक के पीछे लगाई गयीं थीं|

रेडियो पर आकाशवाणी, बीबीसी और न जाने कौन कौन से स्टेशन सुने जा रहे थे| टेलिविज़न लगातार ख़बरें सुना रहा था|

बहनों के सोने के बाद पापा ने मुझे जगाया और मम्मी को बुलाकर कहा हिम्मत से काम लेना| किसी पर ज्यादा भरोसा मत करना| धर्म, कर्म, हिन्दू, मुसलमान, ब्राह्मण बनिया, कोई अब इंसान नहीं रहा सब राजनीति है| राजनीति ने गाँधी जी को मार दिया तो हम तो इंसान ही हैं| माँ ने पूछा, कुछ डर है क्या? पापा में कहा जब वोट के लिए गाँधी, अम्बेडकर और राम नीलाम किये जा चुके हैं, हम तो बहुत छोटे से सरकारी मुलाजिम हैं| संभल कर रह सकते हैं, भगवान ने जितने साँस लिखी होंगी, जी लेंगे|

इस तरह से ७ दिसंबर १९९२ का दिन ख़त्म हुआ|

सात दिसंबर से पहले:

६ दिसंबर १९९२ के बारे में लिखना बेकार है| सब जानते हैं| शाहबानो, मण्डल और बाबरी मस्जिद|

सिकंदराराऊ में हम लोग पापा के तबादले के बाद पहुंचे थे| जिस मुहल्ले में हम रह रहे थे, वहां जनसंघ (उन दिनों तक वहाँ यही कहने का रिवाज था जिसे बदलने का प्रयास जारी था) का बड़ा प्रभाव था| हमारे एक रिश्तेदार संघ के बड़े नेता थे वहां पर| मुझ पर भी काफी प्रभाव पड़ रहा था| मुझे बार बार तुलसीदास, या किसी भी अन्य धार्मिक आन्दोलन द्वारा किसी भी मंदिर के टूटने की बात न उठाने पर आश्चर्य था| क्यों देश के बहादुर राजपूत, मराठे और बाकि लोग मिलकर मुसलमान आक्रमणकारियों के खिलाफ़ खड़े हुए, जिस तरह से हिन्दू – मुसलमान सब ग़दर के दिनों में मिलकर अंग्रेजों से लड़ गए| कई सारे सवाल थे| मगर जबाब में गाली – गलौज थे| शायद एक ही तर्क मुझे प्रभावित कर पाया कि जब मुसलामानों के लिए पाकिस्तान बना है तो ये हिंदुस्तान में क्या कर रहे है| राम मंदिर आन्दोलन में जनता सवाल नहीं पूछ रहे थे और जो सवाल पूछ रहे थे उनके हिन्दू होने पर शक था|

उस के बाद बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी और देश भर में दंगा हुआ| अलीगढ़ कोषागार में नियुक्त वरिष्ठ कोषाधिकारी बीमार पड़ गए और दुसरे छुट्टी पर चले गए| यह दोनों अधिकारी अलीगढ़ से बाहर के जिलों से आये थे और अलीगढ़ में दंगा होने की आशंका मात्र से डरे हुए थे| जिले में मेरे पिता कोषागार के तीसरे वरिष्ठ अधिकारी थे मगर वो अलीगढ़ जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर तैनात थे| दंगों से भले ही पुलिस और प्रशासन का काम बढ़ जाता है| पुलिस की गश्त, गाड़ियों की आवाजाही, घायलों के इलाज, मुआवजे और बहुत कुछ काम होते है जिनके लिए पैसा खर्च होता है| भले ही सरकार के पास कितना ही पैसा क्यों न हो, जब तक उचित अधिकारी उसे प्रयोग के लिए जारी न करे, सारा सरकारी अमला बैठा रह जायेगा|

अलीगढ़ में लगभग पच्चीस दिन कर्फ्यू रहा| ज्यादा लोग नहीं मारे गए या हताहत हुए मगर प्रशासन चौकस था| प्रशासन को मालूम था कि जरा सी चूक नौकरी छीन सकती है और फाँसी भी चढ़ा सकती है|

सात दिसंबर से आगे:

हमारे लिए अच्छे दिन नहीं थे| शायद तीसरे दिन की बात है| पापा को जिस ट्रक में चढ़ाया गया था उस ट्रक के क्लीनर को बीच रास्ते में मॉल – मूत्र कुछ लग गया| रास्ते में साइड पर लगा कर ट्रक रोक लिया गया| पीछे आ रही पुलिस गाड़ी ने तुरंत अगले थाने में सूचना दे दी और थोडा पीछे पुलिस वाले भी कुल्ला दातुन के लिए रिक गए| कुछ ही मिनिट में सामने से पुलिस के और गाड़ियाँ आ पहुँची| मगर इस से ट्रक ड्राईवर घबरा गया| उसने क्लीनर को जल्दी आने की आवाज दी| मगर उस आवाज ने पुलिस के छक्के छुड़ा दिए| पुलिस वालों ने गाड़ी घेर ली| पापा को आदर पूर्वक वहीँ उतर कर दुसरे ट्रक में चढ़ाया गया| उस ट्रक को आधा घंटा रोके रखने के बाद आगे जाने दिया गया था| दरअसल, क्लीनर का नाम बजरंगी था, पुलिस वाले अपने अधिकारी की जान किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में देने का खतरा नैन लेना चाहते थे जिसका नाम बजरंगी जन्म से न होकर बजरंग दल का सदस्य होने की वजह से बजरंगी पड़ा हो|

बजरंग दल पर उस समय खुद संघ के लोगों को विश्वास नहीं रहा था| उन्हें डर था कि यह गर्म खून के लड़के कहीं ज्यादा जोश में न आ जाएँ| उसी दिन शाम को पुलिस वाले पापा के पास कई स्थानीय ट्रांसपोर्ट कंपनी के नाम पते लेकर आये| जिनमें से किसी एक को रोज पापा को अलीगढ़ तक ले जाने और लाने की जिम्मेदारी देनी थी| पापा ने शायद जिस ट्रांसपोर्ट को चुना उसके मालिक का कुछ सम्बन्ध भी संघ से था मगर पुलिस ने उसे साफ़ बोल दिया था कि अगर कुछ धेले भर की भी ऊँच नीच हुई तो उसके साथ बहुत कुछ हो सकता है|

अब मम्मी को रोज ट्रक नंबर, ट्रांसपोर्ट का नाम पता भी बताया जाता था| कभी कभी पापा को रास्ते में उतर कर पुलिस जीप में बिठा कर आगे ले जाते तो कभी आधे रस्ते तक पापा जीप में जाते| प्रशासन बहुत सख्त था| दंगों में तो कम लोग मारे गए मगर पापा को लगता था कि शहर में मौतें बहुत हो रही हैं| कई लोग भूख और ठण्ड के मिले जुले प्रकोप से भी मारे गए थे जिनकी गिनती ठीक से नहीं हुई|

जी हाँ| कर्फ्यू में रसद की सप्लाई सीमित थी, गरीब के पास रोजगार नहीं था| कहीं अलाब था तो माचिस नहीं थी| कई लोग पानी में मसाले घोल कर पी रहे थे तो कहीं गेहूं की दाल बन रही थी| 

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