मेरी छोटी बहन पूनम : एक श्रृद्धांजलि


उस दिन माँ ने हम दोनों भाई बहनों से पूछा था कि बहन चाहिए या भाई? हम दोनों का क्या विचार था मुझे याद नहीं आता मगर हम उस दिन अपनी अपनी तरह प्रसन्न थे| एक दिन जब मौसम में हल्की सी तरावट थी पापा हमें महिला चिकित्सालय ले गए और हम नन्ही बहन से मिल कर खुश थे| जब हम जीप में बैठ कर घर पहुंचे तो बहन से नाराज थे क्योकि वो हमारे साथ नहीं खेल रही थी और हमारी माँ से ही चिपकी हुई थी| बाद में जब वो थोड़ा बड़ी हुई तो मेरी यह नाराजगी बनी रही क्योकि वह या तो माँ के साथ रहती थी या अपनी बड़ी बहन के साथ|

उसका बचपन मेरे लिए एक बीमार मंदबुद्धि लड़की का बचपन था; वह शुरू के पाँच वर्ष ज्वर से लेकर खसरा, टायफायड तक से संघर्ष करती रही और कई बार चिडचिडी हो जाती थी| माँ से उसका विशेष लगाव था| किसी और से उसका बोलना चालना तभी होता था जब बेहद अपरिहार्य हो जाता था| प्राथिमिक शिक्षा के लिए जब उसे पड़ोस के निजी विद्यालय में भेजा गया तो शिक्षिकाओं की शिकायत थी की वह सभी आदेश मानती है, काम भी पूरा रखती है मगर बोल कर किसी भी बात का जबाब नहीं देती| मेरी माँ के कहने पर अध्यापिकाओं ने उसके सामने माँ के लिए भला बुरा कहा; और वो सबसे लड़ पड़ी| इसके बाद वो अध्यापिकाओं की लाड़ली, अपनी अलग दुनिया में मगन अपने रास्ते चलती रही और पढाई करती रही|

मेरा उसका वास्ता शुरु में इतना था कि मैं रोज रात उसको कहानियां सुनाया करता था| इनमें ध्रुवतारे से लेकर सियाचिन की लड़ाइयों तक होती थीं| मुझे नहीं याद कि बचपन में कभी मैंने उसे ठीक से पढ़ाया हो मगर रोजाना के लिए एक किस्सा कहानी तय था| वह दस वर्ष की आयु आते आते पढ़ने लिखने के प्रति अपनी रूचि का विकास कर चुकी थी और सामाजिक संघर्षों के प्रति उसकी जानकारी बढ़ रही थी| बोफोर्स, अयोध्या और मंडल आदि के बारे में वह अपने हमउम्रों से कहीं अधिक जानकारी रखती थी| बारहवीं तक आते आते उसका रुझान अध्यापिका बनने के स्थान पर चिकित्सक बनने की और हो गया था| मगर बारहवीं के परिणाम आशा के विपरीत थे|

इसके ठीक बाद उसका स्वास्थ्य फिर साथ छोड़ गया| उसको बारहवीं उत्तीर्ण करने के कुछ महीने बाद बीमारियों में घेर लिया| पूरे साल उसने बिस्तर पर रहकर ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रवेश परीक्षा की तैयारी की| उसका नाम चयनित छात्रों की सूची में चौबीसवें स्थान पर था जो यक़ीनन एक बढ़ी उपलब्धि थी| मगर संघर्ष जारी था और लड़ाई लंबी थी|

हिंदी माध्यम से पढ़ी उस होनहार छात्रा को सभी कुछ समझ नहीं आता था और वह घर आकर अपने सारे नोट्स हिंदी में समझने की कोशिश करती थी| वर्तनी, उच्चारण, घसीट लेखन, घटता आत्म विश्वास, घर से विश्वविद्यालय की दूरी, बेहद बीमार शरीर के लिए उत्तर भारत की गर्मी, सर्दी और बरसात, सभी परीक्षा लेने पर उतारू थे| प्रथम छःमाही में वह बेहद कठिनाई से उत्तीर्ण हो पायी थी| परन्तु उसने मुझसे कहा की मैं उसे यह गणना कर कर बताऊँ कि अगले हर छःमाही में उसे कितने अंक लाने है कि वह अपनी विधि स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में पा सके|

इसी बीच माँ को कैंसर हो गया और साल भर में वो चली गईं| किसी भी छात्र के लिए माँ का देहावसान दुखद है; उसने किसी तरह से अपने आपको टूटने से बचाया| मगर वह प्रथम श्रेणी चूक गयी|

उसे विधि के स्नातकोत्तर पाट्यक्रम में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया’ दोनों जगह स्थान मिल गया और उसने फिर अलीगढ़ में प्रवेश ले लिया| इस बार वो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई| और उसने पी. सी. एस. (न्यायायिक) प्रारंभिक परीक्षा भी उत्तीर्ण की| मगर दुर्भाग्य आसानी से समाप्त नहीं होता|

ठीक इसी वर्ष, अपनी माँ के कैंसर का शिकार होने से पाँचवे वर्ष उसे कैंसर हो गया|

पूनम, उम्र चौबीस वर्ष, स्तन कैंसर||

हर चिकित्सक बातचीत का प्रारंभ आश्चर्य से करता| इस उम्र में स्तन कैंसर लगभग नहीं ही होते| अनुवांशिक मामलों में भी शायद इस उम्र में नहीं होते|

बहुत से मित्र और सम्बन्धी साथ छोड़ गए| चिकित्सकों में जल्दी ही कैंसर मुक्त घोषित कर दिया मगर… टूटा हुआ मन , तन, समाजिक सम्बन्ध, मष्तिष्क| ईश्वर है भी या नहीं?

उसे कई संबंधों और समाज के बिना बेहद लंबा अवसाद झेलना पड़ा| मगर बहादुर हार नहीं मानते; जी!! कैंसर और ईश्वर से भी नहीं|

उसने दिल्ली के भारतीय विधि संस्थान में प्रवेश लिया; परन्तु परीक्षा नहीं दे सकी| उसने दूसरी बार पी. सी. एस. (न्यायायिक) प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की और मुख्य परीक्षा में भी अच्छे अंक लायी; परन्तु साक्षात्कार में उत्तीर्ण नहीं हो सकी| इलाहबाद विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की पढाई प्रारम्भ की और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नेट परीक्षा भी उत्तीर्ण की| उसने दुमका में “स्वच्छ जल का अधिकार: संवैधानिक एवं विधिक विचार” विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत किया|

मुझसे काफी छोटी होने के बाद भी, मेरे विवाह की सारी व्यवस्था करना भी उसने सहर्ष स्वीकार किया और ढेर  सारे व्यवधान से बाद भी सभी कार्य ठीक से पूरे किये| किसी ने यह सोचा भी नहीं कि भागती फिरती यह लड़की कैंसर से जूझ चुकी होगी और…

परन्तु, एक बार फिर कैंसर में आ घेरा| पन्द्रह दिन के भीतर चिकित्सकों ने निजी रूप से मुझे उसके ठीक न हो पाने की संभावना के बारे में बता दिया| अब छः माह से एक वर्ष की आयु शेष थी| समाज एक बार फिर साथ छोड़ रहा था| एक मित्र में मुझे कहा, उसका जो होना है हो ही जायेगा, आप क्यों हम अपना समय नष्ट करते है|

उसने इस दौरान भी सामान्य बने रहने का पूरा प्रयास किया| अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लगाया हुआ उसका यह फोटो उसे कैंसर हो जाने के बाद का है|

पूनम (25 सितम्बर 2011)

 

उसके अंतिम दस वर्षों में कुछ गिने चुने लोग ही उसके साथ थे; और मुझे बताना ही चाहिए कि वो लोग, ओ उसके साथ रहे, बहुत पढ़े लिखे लोग नहीं है|

19 विचार “मेरी छोटी बहन पूनम : एक श्रृद्धांजलि&rdquo पर;

  1. So sorry for your loss. Your sister lived a short life but a very productive life, where she proved her mettle in achiving good grades in school irrespective of her health related challenges.

    People who stay with us through hard times need not be highly educated or accomplished they ought to be humane. I am glad she had people who loved her and those didn’t just left her.

    May you carry forward her legacy in productive ways. May be institute a scholarship for students facing health challenges. It is just a suggestion.

    Peace,
    Desi Girl

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  2. I met poonam ji , in allahabad at anand bhawan , I was in allahabd to distribute invitation cardsof my brother marrige,she was doing Ph.d from allahabad university, though we were chatting regularly on kaystha e-club,
    I met her for the first time and don’t know that It would be the last one as well…… ,
    I found her very well mannered, sincere and sensitive girl…
    when I heard the news ,I was shocked to know about her cancer illness and remain disturbed for whole day,how can destiny be so cruel…I remember her words that she was very expert in cooking and would prepare dishes for me , when ever I visit their house in Aligarh.

    but time never stands for anyone ….an irreparable loss has been caused to us……….I wished many times to visit at aligarh while passing by… ,but thought to plan to visit next time ….

    May god bless her soul with peace….Poonam ,ji is only a sweet memory now……….

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    • हर्ष!
      आपको याद होगा, आपने पूनम को कुलश्रेष्ठ सभा दिल्ली के एक कार्यक्रम में आने के लिए निमंत्रित किया था परन्तु उसकी जगह मैं आया था| उसको भीड़ भरे पसंद कार्यक्रम पसंद नहीं थे और फिर सभी जगह हम भारतीय अपनी बीमारियाँ जरूर बताते है; वो क्या बताती और क्यों बताती| उसे सहानभूति पसंद नहीं थी|

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      • ok,ya but still it would pain me always , that if I know that earlier i would of some help to her ..after all we cannot change once destiny but still try for it..,…….I know u all have tried ur best,…
        u are right that we indians are in habit of telling our diseases but mostly in hope of cure not sympathy…(please don’t take otherwise)…..I believe every disease has a cure in this world but its destiny of a person that allows him to reach the source…………. …..

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  3. I met her in University of Allahabad while P.Phd interview.I was not selected but was very much inspired with Poonam ji as She was very intelligent, cultured, knoweledgeble ,decent …. .After that She used to guide me and gave nice suggestions regarding career .

    She in no more but still her memories are constant in my mind. God bless her soul.
    Susheel kumar Pandey

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    • उसने आपके बारे में कई बार चर्चा की थी और आपको बड़ी बहन की तरह देखती थी|
      वह निजी जीवन के बारे में बात करना इसलिए पसंद नहीं करती थी क्यों कि लोग या तो विश्वास नहीं कर पाते थे या उनके पास बेचारगी के भाव आ जाते थे| परिवार के बाहर किसी से हमने उसकी बीमारी की चर्चा सामान्यतः कभी नहीं की|

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      • PATA NAHI AGAR YE DESTINY HAI TO AISA HOTA KYON HAI ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,MUJHE HAMESHA ASHCHARY HOTA THA KI JAB ME POOCHHTI THI KAISI HO HAMESHA REPLY POSITIVE MILA US SAMAY BHI JAB WO APNPNE JIVAN KE KATHIN PALO ME THI ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,AISA VYAKTIVA HAMESHA PRERNAA KA PATRA HAI HUM SABHI KE LIYE ,,,,,,,,,,,,,USKE COLLEGE YA KULS KALYAN SAMITI ME HUM USKE NAAM SE KUCHH SCHOLOR SHIPS DE SAKE TO BAHUT ACHCHHA HOGA ,,,,,,,,,,,,,,,SPECIALLY UN BACHCHO KE LIYE YA UN LONGO KE LIYE JO SAMAJ ME KISI NA KISI SANGHARSH SE JHOOJH RAHE HAIN ,,,,,,,,,,,,,,,

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    • मुझे लगता है कि जो विद्यार्थी इस प्रकार के संघर्ष से जूझ रहे है, उनके लिए कुछ करना चाहिये| अभी इससब से जुड़े कई मुद्दे है जिनपर विचार करना है|

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      • क्या लिखा जायेगा उस Life sketch में.. संघर्ष ही संघर्ष था उसके जीवन में कोई फल नहीं मिला| लोग क्या प्रेरणा लेंगे? मुझे कोई विशेष आकर्षण नही लगता बाकी अगर आपको उचित लगता है तो मेरी और से कोई विशेष आपत्ति भी नहीं है| घर में और लोगों से बात कर लेता हूँ|

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  4. Hand written letter from Prof H N Tiwari dated 10/06/2012:

    “Poonam’s death is a great personal loss to me. She had just started learning ABC of research and she was so happy with it. But it is ultimately the God’s wish which each one of us on this earth has to accept. The Almighty must have thought something batter and more important for her which is why she left so soon.

    May her soul rest in peace and may God give strength and courage tto bear this great loss to the family”

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    • उसका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी था कि उसकी कई सारी उपलब्धियां हमें याद ही नहीं रही उन में से एक यह NSS (राष्ट्रीय सेवा योजना) भी है.
      साथ ही वो पर्वतारोहण, फोटोग्राफी और तैराकी में भी रूचि रखती थी. यह सब उसने AMU के लीनो में ही किया.
      और खाना बनाने में वो उस्ताद थी..

      शायद अप्रैल २०११ में उसने महिला भ्रूण हत्या पर किसी सेमीनार में अपना आलेख प्रस्तुत किया था..

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