यह वेदों का अत्यधिक उल्लिखित वाक्य है. इसको लोग विभिन्न प्रकार से समझते रहे है.
ईश्वर में विश्वास न रखने वाले लोग इसे ईश्वर के न होने, और ईश्वर की जगत में आवश्यकता न होने के तर्क में भी प्रतिपादित करते है. यह लोग विश्वास करते है कि इस जगत में अगर ईश्वर नामक तत्व कि आवश्यकता है तो वह यह तत्व वह खुद है.
अद्वैतवाद इस अवधारणा में आत्मा और परमात्मा की एकरूपता देखता है. ईश्वरीय सद्गुणों में आत्मा के गुणों के रूप में परिभाषित किया जाता है. यह इस वाक्य का सर्वाधिक प्रचिलित रूप है.
द्वैतवाद आत्मा और परमात्मा ने भिन्नता का प्रतिपादन करता है और ईश्वर इस जगत में आत्मा का एक क्रूर, चापलूसी पसंद शासक है. अतः, आत्माओं को ईश्वर कि भक्ति (चापलूसी) करते रहना पड़ता है. चापलूसो पर दयालू रहने वाला ईश्वर मेरा ईश्वर नहीं हो सकता. इस विचार के चलते श्रेष्ठ आसित्क लोग मुझे नासित्क माना करते है.
मैं ईश्वर को इसलिए नहीं नकारता क्योकि भले ही वह एक भुलावा हो, पर ईश्वर का होना हमें एक सहारा देता है.
जब भी मैं अपने पास ईश्वर को देखने का प्रयास करता हूँ तब अपने को ईश्वर के अत्याधिक दूर पाता हूँ. मुझे नहीं लगता कि ईश्वर रोज मेरे इर्द गिर्द रहता है. उसे अपनी सृष्टि पर विश्वास होना चाहिए कि वह भली प्रकार चलेगी. ईश्वर के इस जगत में आत्मा को इतने क्षमता अवश्य होनी चाहिए कि वह समुचित कार्य कर सके. इस अर्थ में, मैं एक त्रैतवादी हूँ. मुझे लगता है कि ईश्वर, प्रकृति और पुरुष भिन्न तत्व हैं. ईश्वर के बनाए सभी नियम; सात्विक, राजसिक एवं तामसिक मिलकर समस्त प्रकृति की संरचना करते है और यह प्रकृति ही सृष्टि को चलाती है. आत्मा इन्ही प्रकृति नियमों में बंधी है. मुझे नहीं लगता कि ईश्वर उपासना मुझे किसी प्रकार से श्रेष्ठ बना सकती है या मोक्ष आदि कोई सपना मेरे लिए सच कर सकती है. मुझे ईश्वर के बनाए प्राकृतिक नियमों का पालन करना चाहिए यही मेरी पूजा हो सकती है. मुझे नहीं लगता कि ईश्वर मुझे भीख का कटोरा लेकर देखना पसंद करता है. ईश्वर कि बनाई इस दुनिया में ईश्वर की दी हुई क्षमताओं के साथ मैं ही अपना ईश्वर हूँ. यह एक प्रकार से क्षमताओं का प्रतिनिधिकरण है. यदि प्रकृति के अनुरूप नहीं चलता तो प्रकृति मेरा ईश्वर है. इस सब के उपरान्त ही ईश्वर मेरा ईश्वर है. यह मेरे त्रैतवाद का “अहं ब्रह्मास्मि” है.
नोट: मेरे विचारों से सहमत होने आवश्कता नहीं है. सभी को विचारों की भिन्नता की स्वतंत्रता है.